Add To collaction

दो से चार -05-Jan-2022



आशा और अनिल दोनों के घरवालों की खुशी का कोई ओर छोर नहीं था । आशा के पिता अनिल के पिता से मिले कि अनिल प्रशिक्षण लेने मसूरी जाए उससे पहले ही उन दोनों की शादी हो जाए । अनिल के पिता के तो मिजाज ही बदल गए । उन्होंने बड़े ही रूखे ढंग से आशा के पिता के साथ बात की । कहने लगे " इतनी भी क्या जल्दी है ? जब इतने साल इंतजार किया तो थोड़े दिन और इंतजार करने में हर्ज ही क्या है ? पहले अनिल को एक बार ज्वाइन तो करने दो फिर शादी भी कर लेंगे । भाग कर थोड़े ही कहीं जा रहे हैं यहां से हम " ? 

अनिल के पिता के व्यवहार से आशा के पिता बहुत दुखी हुए लेकिन वे कर भी क्या सकते थे ? जिनका बेटा आई ए एस बन जाता है वो भी शायद ऐसे ही बदल जाते होंगे , उन्होंने सोचा । वो चुपचाप वहां से चले आए । 

उधर अनिल ने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी मसूरी में ज्वाइन कर लिया । उसे केरल कैडर मिला था । केरल कैडर बहुत अच्छा कैडर नहीं माना जाता है । वह अपने राज्य उत्तर प्रदेश में ही नौकरी करना चाहता था । कैडर केवल एक ही शर्त पर परिवर्तित हो सकता था जब उसकी पत्नी भी आई ए एस या आई पी एस हो तो उसे वहां का कैडर दिया जा सकता था । 

रश्मि को उत्तर प्रदेश कैडर मिला था । वह अभी तक कुंवारी थी । यदि अनिल रश्मि से शादी कर ले तो अनिल को भी उत्तर प्रदेश कैडर मिल सकता था । 

अनिल के पिता को यह बात पता चली तो उन्होंने अनिल पर रश्मि के साथ शादी करने को जोर डालना शुरू कर दिया । जब अनिल ने आशा के साथ "कमिटमेंट" और उसकी तपस्या की बात की तो उसके पिता ने मुंह बिचकाकर कह दिया "ऐसे छोटे लोगों से अब तुम्हें संबंध नहीं रखने चाहिए , अनिल । अब तुम एक बेरोजगार युवक नहीं एक आई ए एस हो । भावी कलेक्टर । अब तो बड़े बड़े लोग तुम्हारे आगे पीछे घूमेंगे । उस आशा में क्या धरा है ? ना रूप ना रंग ना पैसा ना प्रतिष्ठा और ना कोई पद ।  क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हो ? मैंने तुम्हारी बैचमेट रश्मि गर्ग के पिताजी से बात कर ली है । बहुत बड़े सेठ हैं वे । पचासों तो नौकर चाकर हैं उनके । वो तो तैयार हैं बस, रश्मि की हां का इंतजार है उनको । तुम उसे पटा लो तो काम बन जायेगा । इससे एक पंथ दो काज होंगे । एक तो तुम्हारा कैडर बदल जाएगा । तुम यहाँ उत्तरप्रदेश में कलक्टर बन जाओगे और दूसरा हम सबकी तकदीर बदल जायेगी । पूरे गांव में हमारी प्रतिष्ठा कितनी बढ़ जायेगी इसकख अंदाजा भी नहीं होगा तुमको । अब तुम ठंडे दिमाग से सोच लो फिर अपना निर्णय सुनाना" । 

अनिल को अपने पिता की बात सही लगने लगी । दुनियादारी इसी का नाम है । भूतकाल में जीना कोई बुद्धिमानी नहीं है । भविष्य के लिए कुछ समझौते करने ही पड़ते हैं । ऐसा सोचकर अनिल ने रश्मि से दोस्ती बढ़ा दी । रश्मि बड़ी जल्दी पिघल गई । रश्मि के हां करते ही उन दोनों की शादी पक्की हो गई । 

उधर आशा इस घटनाक्रम से अनजान थी । आशा के परिवार को इस शादी की जानकारी नहीं हो इसलिए अनिल के पिता ने उनकी शादी दिल्ली में रखी थी । गांव में किसी को पता ही ना चले । धूमधाम से दोनों की शादी हो गई । 

जब आशा को पता चला कि अनिल की शादी रश्मि से हो गई है तो वह सदमे के कारण मानसिक तनाव में आ गई और उसे "माइग्रेन" ने दबोच लिया । अनिल के धोखे से वह डिप्रेशन में आ गई  । उसे पुरुष जाति से घृणा हो गई । जिस अनिल के लिए उसने अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी थी वही अनिल किसी और से शादी कर सकता है , इस बात पर वह यकीन कर ही नहीं सकती थी । पर सच सामने था । आशा का मिजाज सख्त पत्थर सा हो गया । चिड़चिड़ी सी हो गयी थी वह ।  किसी से सीधे मुंह बात भी नहीं करतीं थी । सबको खूब खरी खोटी सुनाती थी । लोग उससे दो किलोमीटर दूर ही रहने में अपनी भलाई समझने लगे । आशा के पिता ने उसे शादी करने के लिए बहुत मनाया पर वह टस से मस नहीं हुई । वह कहती रही कि उसने तो शादी कर ली है । औरत एक बार ही शादी करती है बार बार नहीं । आखिर उसने शादी नहीं की । वह ऐसी अभागन स्त्री थी कि उस बेवफा अनिल को शाप भी नहीं दे सकती थी क्योंकि उसके मन मंदिर का देवता अभी भी अनिल ही था । अपने देवता को वह कैसे शाप दे सकती है । किस्मत को कोसने के अलावा और कोई काम नहीं था उसके पास ।

वह एकाकी हो गई । घर से बाहर जाना बंद कर दिया उसने । किसी से बात चीत नहीं करती थी सिवाय अपने इष्ट शंकर भगवान के । शिवजी से ही शिकायत करती रहती थी कि उसने ऐसे कौन से पाप किए थे जो इतने कष्ट झेलने पड़ रहे हैं उसे । शिवजी उसके प्रश्नों के कोई जवाब तो नहीं देते थे , सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाते थे । आशा की शिवजी के साथ रोज ही लड़ाई होती थी लेकिन वह उनसे दूर भी नहीं जा सकती थी । पहले वह अनिल को सहारा मानती थी मगर अब  शिवजी ही सहारा थे । उसके जीने का वही तो एकमात्र आधार थे । वह पत्थर की तरह पड़ी रहती थी । मन हुआ तो कुछ खा पी लिया नहीं तो भूखी प्यासी पड़ी पड़ी आंसू बहाती रहती थी । 

समय अपनी गति से चलता रहता है । वह किसी का इंतजार नहीं करता बल्कि लोग समय का इंतजार करते हैं । तीन साल गुजर गए । आशा को तो अब यह संसार नर्क जैसा लगता था । 

सब दिन होत न एक समान । समय सबका बदलता है । पड़ोस की रीना भाभी ने एक बहुत खूबसूरत गुड़िया को जन्म दिया । आशा वैसे तो कहीं जाती नहीं थी लेकिन पता नहीं ईश्वर की क्या मर्जी थी , वह उसे देखने चली गई । आशा ने जब उस गुडिया को देखा तो वह देखती ही रह गई । कितनी सुन्दर , कितनी प्यारी थी गुड़िया । बस, उस दिन से आशा का मन बदल गया । वह अक्सर रीना भाभी के घर चली जाया करती थी और घंटों उस नन्ही सी गुड़िया से "हूं हां" में बतड़ाया करती थी । और कभी कभी तो वह उसे लेकर अपने घर भी आ जाती थी । 

रीना नौकरी करती थी । अध्यापिका थी वह । वह भी सरकारी विद्यालय में । उसकी "मैटरनिटी लीव" खत्म हो गई थी । उसे विद्यालय जाना था नौकरी के लिए लेकिन गुड़िया का वह क्या करे ? आशा ने उसकी समस्या हल कर दी । रीना को कह दिया कि गुड़िया को वह उसके पास छोड़ जाए , वह उसे संभाल लेगी । 

गुड़िया का साथ पाकर आशा का जहरीला मन थोड़ा थोड़ा पिघलने लगा । अच्छाई के साथ रहकर बुराई भी कम होने लगती है । मासूमियत के सामने नफरत छूमंतर हो जाती है । गुड़िया की मासूमियत और बाल सुलभ क्रीड़ाओं ने आशा के मन पर चढी नफरत की बर्फ पिघलानी शुरू कर दी । पड़ोस में एक और महिला भी नौकरी करती थी । उसने भी अपने बेटे को आशा को सौंप दिया । आशा का दिन उन दोनों बच्चों के साथ बढ़िया निकल जाता था । उसके मन में आया कि वह एक " क्रेश " खोल ले । उसने यह विचार अपनी मां को बताया तो उसने खुशी खुशी सहमति ही नहीं दी बल्कि उसे अभिप्रेरित भी किया । 

आशा की शादी की बात भी चलाई गई लेकिन आशा ने इसे सिरे से ही खारिज कर दिया । घर में ही एक क्रेश खुल गया। दस बच्चे आ गए थे उसमें । आशा के लिए तो यह एक प्रकार से स्वर्ग जैसा था। दिन भर वह नन्हे मुन्ने "भगवानों" के साथ रहती । उनकी सेवा करती और खुश रहती थी । अब उसके स्वभाव में परिवर्तन हो गया था । अब वह सामान्य स्थिति में आ गई थी । 

इसी तरह लगभग दस वर्ष व्यतीत हो गए थे । आशा की दुनिया "क्रेश" में सिमट आई थी । इससे उसे खुशी और पैसा दोनों मिल रहा था । लेकिन इस लॉकडाउन में सब कुछ बंद हो गया था । पता नहीं यह लॉकडाउन कब तक चलेगा ? उसे उन बच्चों की याद आने लगी । मगर वह न तो कहीं जा सकती थी और न ही उन बच्चों को अपने क्रेश में बुला सकती थी


   10
5 Comments

Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:03 PM

Nice part

Reply

Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:23 PM

बहुत सुंदर भाग

Reply

Shalu

07-Jan-2022 02:03 PM

Bahut badiya

Reply